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बुधवार, 8 अक्टूबर 2014

सपनों में रिश्ते बुनते देखा

सपनों में रिश्ते बुनते देखा
जब आँख खुली तो
कुछ ना था;
आँखों को हाथों से
मलकर देखा
कुछ ना दिखा;
ख़्वाब था शायद ख़्वाब ही होगा।
सपनों में रिश्ते बुनते देखा॥

जब ना यकीं
हुआ आँखों को
धाव कुरेदा
ख़ूँ बहा कर देखा;
बहते ख़ूँ से
दिल पर
मरहम लगा कर देखा;
धाव था शायद धाव ही होगा।

शनिवार, 4 अक्टूबर 2014

जीने की लत

जीने की लत
जो हमने है पाली
जीने की लत……….

जीता हूँ दिल पर
बोझ लिए अब
रात अंधेरी
है काटे हरदम।
जब बोझिल
कुछ कदम बढाऊँ
राह मुझे छोड़े जाती है॥
जीने की लत……….

इक पल
मुझको चैन मिले जो
नज़र कुछ आती हैं।
कुछ चुप रहतीं हैं
कुछ कहतीं
फ़िर हाथ पकड़कर
जाने कहाँ


जीने की लत……….

मंगलवार, 30 सितंबर 2014

सूरज क्या, तू संग लाया है?

सूरज! तू क्या संग लाया है?
आशाओं को,
क्या पीली किरणों में बिखराया है?
सूरज! तू क्या संग लाया है?

सांसें जो
बोझिल हैं अब तक
उनको क्या तू सहलाया है?
सूरज! तू क्या संग लाया है?



मरते मन में
क्या किरणें तेरी
ज्योति नई भर लाई हैं?
चंचल तन को क्या
स्निग्ध सुधा से नहलाई हैं?
सूरज! तू क्या संग लाया है?

शनिवार, 27 सितंबर 2014

हमसफ़र चाहता हूँ

हमसफ़र चाहता हूँ,
बस इक तेरी नज़र चाहता हूँ।
जिन्दगी कुछ यूँ हो मेरी,
बस इक घर चाहता हूँ॥
हमसफ़र चाहता हूँ॥

कदम दो कदम जो चलना जिन्दगी में
कदमों पे तेरे, कदम चाहता हूँ।
लबों पे खुशी हो तेरे सदा
ऐसी कोई कसम चाहता हूँ।
हमसफ़र चाहता हूँ॥

राह--जिन्दगी होगी हसीन
ग़र संग हम दोनों चलें
फूलों में देखो, हैं रंग कितने
उन्हीं में जीवन बसर चाहता हूँ।
हमसफ़र चाहता हूँ॥

गुरुवार, 25 सितंबर 2014

दीपिका पादुकोण: महिला सशक्तिकरण का नया प्रतिमान

इस देश में महिला सशक्तिकरण के मुद्दे पर बहुत कुछ हो रहा है और इसी क्रम में दीपिका पादुकोण ने अभूतपूर्व योगदान दिया है। ऐसा नहीं है कि दीपिका पादुकोण ने अकेले ही इस महान यज्ञ में आहुति दी है; और भी बहुत लोग हैं और राजनीति एवं साहित्य जगत का योगदान भी महत्त्वपूर्ण और बहुत हद तक क्रान्तिकारी है।


हुआ यूँ कि दीपिका का वक्षस्थल किसी के नज़र में आ गया और उस कामी व्यक्ति ने उस स्वर्गीय एवं मनोहारी दृश्य को बाकी लोगों के नज़र करने का अपराध कर मर्यादाओं का उलंघन कर दिया जो कि निश्चित रूप से स्त्री की अस्मिता एवं सम्मान पर आक्रमण है। कदाचित ऐसा नहीं होना चाहिए। अगर कोई कपड़ा नहीं पहनता है तो ये उसकी स्वतंत्रता है और दीपिका ने सब कुछ कला के अभूतपूर्व विकास के लिए किया है ठीक उसी तरह जैसे कुछ देवी देवताओं का नंगा चित्र बनाया गया था। भाई ये कला है अश्लीलता नहीं और साथ ही स्त्री सशक्तिकरण का ज़रिया भी है। अतः दोष उस व्यक्ति और उन पुरूषों का है जो स्त्री को गलत नज़रों से देखते हैं और कला एवं अश्लीलता को मिलाते हैं। आमिर खान नंगा हो सकता है तो क्या दीपिका अपना वक्षस्थल भी नहीं दिखा सकती? ये बहुत अन्याय है। ये पूर्णरूप से पुरूषवादी एवं सामंतवादी संकीर्ण सोच है। शर्म आनी चाहिए ऐसे पुरूषों को जो चुपचाप मनोरंजन करने के बजाय सवाल उठा रहे हैं। मुझे लगता है ये सारे सवाल कहीं दक्षिणपंथी किसी राजनैतिक साजिश के तहत तो नहीं कर रहे क्योंकि उनकी वजह से ही हुसैन साहब को देश से बाहर मरना पड़ा था जबकि वो सिर्फ कला के विकास में योगदान दे रहे थे। दीपिका तुम भी डरे रहना इन दक्षिणपंथियों से। वैसे हम तुम्हारे साथ हैं और हम सम्मान की निगाहों से तुम्हें देखेंगे या फिर जैसे कहोगी वैसे देखेंगे।



बुधवार, 24 सितंबर 2014

चलना मेरा काम

राही हूँ मैं, चलना मेरा काम
चलते जाना, है मेरा अन्जाम।
राही हूँ मैं, चलना मेरा काम॥

दौड़ लगाना, फिर हाँफ जाना
रुकना नहीं, है मेरा ईनाम।
दरिया और मरु, सब बेगाने
ज़ोर लगाना, मेरा इन्तज़ाम
राही हूँ मैं, चलना मेरा काम॥

हार जीत का, मतलब क्या
राह जब, है मेरा मुकाम।
थकना मैंने, सीखा ही नहीं
मिट जाना, है मेरा इन्तकाम।
राही हूँ मैं, चलना मेरा काम॥

© राजीव उपाध्याय

मंगलवार, 23 सितंबर 2014

जाना है मुझको

जाना है मुझको, मैं चला जाऊँगा
चाहो ना चाहो, पर याद आऊँगा।

जब-जब गुँजेगी आवाज़ तेरी,
जब नाम तेरा लिया जाएगा
हर सुर में, हर बोल को
मैं संग तेरे गुनगुनाऊँगा।
चाहो ना चाहो, पर याद आऊँगा॥

मंजिल दूर, राह ना आसान है
कभी चलूँगा, कभी ठहर जाऊँगा
मैं सफ़र का, गुमनाम मुसाफ़िर तेरा
हर पल साया बन, साथ निभाऊँगा।
जाना है मुझको, मैं चला जाऊँगा,
चाहो ना चाहो, पर याद आऊँगा॥

©राजीव उपाध्याय


सोमवार, 22 सितंबर 2014

हक़ीकत नहीं, ना ही फसाना है ये

हक़ीकत नहीं
ना ही फसाना है ये
ख्वाबों में बस
आना-जाना है॥
हक़ीकत नहीं, ना ही फसाना है ये॥ 

लोगों की बातें मैं सुनता नहीं

अपना कहा मैं करता नहीं
अब होने
ये क्या लगा है
दिल ही नहीं,
ना ही मयखाना है ये॥
हक़ीकत नहीं, ना ही फसाना है ये॥ 

जब आसमां से उतर

जब जमीं देखता हूँ
सड़क है ना ही पगडंडी
और ना पग के निशान
ढूँढू तो ढूँढू,
आशियाँ अपना कैसे
राह-ए-डगर को
जो रूक जाना है
हक़ीकत नहीं, ना ही फसाना है ये॥ 

© राजीव उपाध्याय




शुक्रवार, 19 सितंबर 2014

विरोध जारी रखें

ये अच्छी बात है कि आप बुद्धिमान, ज्ञानी एवं बुद्धिजीवी हैं। आप चीजों का विश्लेषण कर सकते हैं। परन्तु आपका ज्ञान एवं विश्लेषण करने की क्षमता का प्रयोग कहाँ हो रहा है यह ज्यादा महत्त्वपूर्ण है। आजकल एक अच्छा रिवाज है कि आप अपने ज्ञान को प्रदर्शित करने लिए किसी का विरोध करना प्रारम्भ कर दीजिए इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि आपका विरोध सही है या गलत। बस आपको अति की स्थिति तक विरोध करने आना चाहिए और विरोध करते समय आप अपने कार्यों को विश्लेषण ना करने की आदत होनी चाहिए। शायद ये अच्छा तरीका भी है लोगों के नज़रों में बने रहने का। कई बार पारितोषिक भी मिलता है। जी चाहे तो हर बड़े चर्चित नाम के इतिहास को देख लें। अतः विरोध करने की परम्परा बनाए रखें चाहे भले ही वो आपका मजाक उड़ाए।
© राजीव उपाध्याय

सोमवार, 15 सितंबर 2014

सोमवार, 2 जनवरी 2012

हवा के इक झोंके ने

हवा के इक झोंके ने रुख--जिंदगी बदल दी
जाने कहाँ से कहाँ की तय मंजिल बदल दी।



महबूब ने मेरे जाने कौन सी ली बात दिल पर
कि उस बात ने मेरी हर बात बदल दी।

कोई तक़रार हुई होती तो कुछ समझ आता
अन्जान किसी लम्हें ने सारी कायनात बदल दी

हम दिल को बता समझाएं बहलाएं कैसे
जब तूमने मेरी दिन--रात बदल दी।
©राजीव उपाध्याय

गुरुवार, 22 दिसंबर 2011

कुछ मुक्तक -5

ये प्यार है या कुछ और है, हमको बता ये कौन है
जो नींद थी आँखों मे, अब नज़र आती नहीं
सपने हैं कुछ हसीन से, जो आँखो से जाते नहीं
ये प्यार है या कुछ और है, हमको बता ये कौन है॥

तमाम शिकवे गिले भूलाकर गए, साथ अपने हमको छुपाकर गए।
अब चलें तो चलें किस राह पर, ना मंजिल ना रास्ता बताकर गए।।


कुछ इस कदर ख़फा वो हमसे हुए,
कुछ ना कहे चले गए,
आँसू भी मेरे संग ले गए।।
©राजीव उपाध्याय