बुधवार, 8 अक्टूबर 2014

सपनों में रिश्ते बुनते देखा

सपनों में रिश्ते बुनते देखा
जब आँख खुली तो
कुछ ना था;
आँखों को हाथों से
मलकर देखा
कुछ ना दिखा;
ख़्वाब था शायद ख़्वाब ही होगा।
सपनों में रिश्ते बुनते देखा॥

जब ना यकीं
हुआ आँखों को
धाव कुरेदा
ख़ूँ बहा कर देखा;
बहते ख़ूँ से
दिल पर
मरहम लगा कर देखा;
धाव था शायद धाव ही होगा।

11 टिप्‍पणियां:

  1. Bahut sunder prastuti ... Har sapne ki yahi kahani toota jab bhi de gya aankh me paani !!

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  2. प्रोत्साहन के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद जोशी जी।

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  3. बहुत ज्यादा पसंद आई...बहुत ही खुबसूरत रचना रची है आपने..बधाई स्वीकारें.

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    1. प्रोत्साहन के लिए आपको सादर धन्यवाद मित्र। मेरे लिए खुशी की बात है कि कविता आपको पसंद आई।

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  4. उत्तर
    1. प्रोत्साहन के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद विम्मी जी।

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