सपनों में रिश्ते बुनते देखा
जब आँख खुली तो
कुछ ना था;
आँखों को हाथों से
मलकर देखा
कुछ ना दिखा;
ख़्वाब था शायद ख़्वाब ही होगा।
सपनों में रिश्ते बुनते देखा॥
जब ना यकीं
हुआ आँखों को
धाव कुरेदा
ख़ूँ बहा कर देखा;
बहते ख़ूँ से
दिल पर
मरहम लगा कर देखा;
धाव था शायद धाव ही होगा।
सपनों में रिश्ते बुनते देखा॥
Bahut sunder prastuti ... Har sapne ki yahi kahani toota jab bhi de gya aankh me paani !!
जवाब देंहटाएंआपसे सहमत हूँ। बहुत-बहुत धन्यवाद परी जी।
हटाएंप्रोत्साहन के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद जोशी जी।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर एवं भावपूर्ण रचना.
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत धन्यवाद राजीव जी।
हटाएंबढ़िया अभिव्यक्ति !!
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत धन्यवाद सतीश जी।
हटाएंबहुत ज्यादा पसंद आई...बहुत ही खुबसूरत रचना रची है आपने..बधाई स्वीकारें.
जवाब देंहटाएंप्रोत्साहन के लिए आपको सादर धन्यवाद मित्र। मेरे लिए खुशी की बात है कि कविता आपको पसंद आई।
हटाएंभावपूर्ण रचना
जवाब देंहटाएंप्रोत्साहन के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद विम्मी जी।
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