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शनिवार, 18 अप्रैल 2020

ठंडा गोश्त - सआदत हसन मंटो

ईशर सिंह जूंही होटल के कमरे में दाख़िल हुआ। कुलवंत कौर पलंग पर से उठी। अपनी तेज़ तेज़ आँखों से उसकी तरफ़ घूर के देखा और दरवाज़े की चटख़्नी बंद कर दी। रात के बारह बज चुके थे, शहर का मुज़ाफ़ात एक अजीब पुर-असरार ख़ामोशी में ग़र्क़ था।

कुलवंत कौर पलंग पर आलती पालती मार कर बैठ गई। ईशर सिंह जो ग़ालिबन अपने परागंदा ख़यालात के उलझे हुए धागे खोल रहा, हाथ में कृपान लिये एक कोने में खड़ा था। चंद लम्हात इसी तरह ख़ामोशी में गुज़र गए। कुलवंत कौर को थोड़ी देर के बाद अपना आसन पसंद न आया, और वो दोनों टांगें पलंग से नीचे लटका कर हिलाने लगी। ईशर सिंह फिर भी कुछ न बोला।

कुलवंत कौर भरे भरे हाथ पैरों वाली औरत थी। चौड़े चकले कूल्हे, थुलथुल करने वाले गोश्त से भरपूर कुछ बहुत ही ज़्यादा ऊपर को उठा हुआ सीना, तेज़ आँखें। बालाई होंट पर बालों का सुरमई गुबार, ठोढ़ी की साख़्त से पता चलता था कि बड़े धड़ल्ले की औरत है।

बुधवार, 26 जून 2019

नेहरू के नाम मंटो का खत - सआदत हसन मंटो

सआदत हसन मंटो Saadat Hasan Manto
पंडित जी,
अस्‍सलाम अलैकुम।

यह मेरा पहला खत है जो मैं आपको भेज रहा हूँ। आप माशा अल्‍लाह अमरीकनों में बड़े हसीन माने जाते हैं। लेकिन मैं समझता हूँ कि मेरे नाक-नक्श भी कुछ ऐसे बुरे नहीं हैं। अगर मैं अमरीका जाऊँ तो शायद मुझे हुस्‍न का रुतबा अता हो जाए। लेकिन आप भारत के प्रधानमंत्री हैं और मैं पाकिस्‍तान का महान कथाकार। इन दोनों में बड़ा अंतर है। बहरहाल हम दोनों में एक चीज साझा है कि आप कश्‍मीरी हैं और मैं भी। आप नेहरू हैं, मैं मंटो... कश्‍मीरी होने का दूसरा मतलब खूबसूरती और खूबसूरती का मतलब, जो अभी तक मैंने नहीं देखा।


मुद्दत से मेरी इच्‍छा थी कि मैं आपसे मिलूँ (शायद बशर्ते जि़ंदगी मुलाकात हो भी जाए)। मेरे बुजुर्ग तो आपके बुजुर्गों से अक्सर मिलते-जुलते रहे हैं लेकिन यहाँ कोई ऐसी सूरत न निकली कि आपसे मुलाकात हो सके।