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शुक्रवार, 12 फ़रवरी 2021

तन गई रीढ़ - नागार्जुन

झुकी पीठ को मिला
किसी हथेली का स्पर्श
तन गई रीढ़।

महसूस हुई कन्धों को
पीछे से,
किसी नाक की सहज उष्ण निराकुल साँसें
तन गई रीढ़।

कौंधी कहीं चितवन
रंग गए कहीं किसी के होठ
निगाहों के ज़रिये जादू घुसा अन्दर
तन गई रीढ़।