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गुरुवार, 12 दिसंबर 2019

बे-नाम सा ये दर्द ठहर क्यूँ नहीं जाता - निदा फ़ाज़ली

बे-नाम सा ये दर्द ठहर क्यूँ नहीं जाता 
जो बीत गया है वो गुज़र क्यूँ नहीं जाता॥

सब कुछ तो है क्या ढूँढती रहती हैं निगाहें 
क्या बात है मैं वक़्त पे घर क्यूँ नहीं जाता॥

वो एक ही चेहरा तो नहीं सारे जहाँ में 
जो दूर है वो दिल से उतर क्यूँ नहीं जाता॥

बुधवार, 7 अगस्त 2019

किधर जाओगे - निदा फ़ाज़ली

घर से निकले तो हो सोचा भी किधर जाओगे
हर तरफ़ तेज़ हवाएँ हैं बिखर जाओगे।

इतना आसाँ नहीं लफ़्ज़ों पे भरोसा करना
घर की दहलीज़ पुकारेगी जिधर जाओगे।

शाम होते ही सिमट जाएँगे सारे रस्ते
बहते दरिया से जहाँ होगे ठहर जाओगे।

मंगलवार, 25 जून 2019

धूप में निकलो - निदा फ़ाज़ली

धूप में निकलो घटाओं में
नहाकर देखो
ज़िन्दगी क्या है, किताबों को
हटाकर देखो।

सिर्फ आँखों से ही दुनिया
नहीं देखी जाती 
दिल की धड़कन को भी बीनाई
बनाकर देखो।