प्रतिलिपि डाट काम पर प्रकाशित एक कविता आपकी नज़र
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अकेले ही अकेले हूँना साथ कोई है मेरे
लोग सारे चले गये
तन्हा मैं ही रह गया।
राही सभी चले गये
देखता मैं रह गया
दूर गया कारवाँ
अकेला ही ठहर गया।
फैसला ये अज़ीब है
लोगों में मैं बँट गया
और जाकर रूका वहाँ
सब कुछ जहाँ थम गया।
अकेले ही अकेले हूँ
ना साथ कोई है मेरे॥
© राजीव उपाध्याय
फैसला ये अज़ीब है
लोगों में मैं बँट गया
और जाकर रूका वहाँ
सब कुछ जहाँ थम गया।
अकेले ही अकेले हूँ
ना साथ कोई है मेरे॥
© राजीव उपाध्याय
सब का साथ होते हुए भी जिंदगी अकेली ही बितानी होती है ...
जवाब देंहटाएंजी ये एक अनचाहा सच है जिसके साथ सबको जीना होता है।
हटाएंसुंदर ।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत धन्यवाद
हटाएंअकेला चल चला चल...यही रीत है ..भावपूर्ण रचना .
जवाब देंहटाएंजी सही कह रही हैं आप। धन्यवाद।
हटाएंबहुत सुंदर एवं भावपूर्ण.
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत धन्यवाद राजीव जी
हटाएंबहुत बहुत धन्यवाद राजेन्द्र जी
जवाब देंहटाएंसच्चा सच ...... सुन्दर शब्द रचना
जवाब देंहटाएंhttp://savanxxx.blogspot.in
बहुत बहुत धन्यवाद सावन जी
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