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सोमवार, 5 अगस्त 2019

ज़िन्दगी से बड़ी सज़ा ही नहीं - कृष्ण बिहारी 'नूर'

ज़िन्दगी से बड़ी सज़ा ही नहीं, 
और क्या जुर्म है पता ही नहीं।

इतने हिस्सों में बट गया हूँ मैं, 
मेरे हिस्से में कुछ बचा ही नहीं| 

ज़िन्दगी! मौत तेरी मंज़िल है 
दूसरा कोई रास्ता ही नहीं।

सच घटे या बड़े तो सच न रहे, 
झूठ की कोई इन्तहा ही नहीं।