सहमा सहमा डरा सा रहता है
जाने क्यूँ जी भरा सा रहता है।
काई सी जम गई है आँखों पर
सारा मंज़र हरा सा रहता है।
एक पल देख लूँ तो उठता हूँ
जल गया घर ज़रा सा रहता है।
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गुरुवार, 19 नवंबर 2020
सहमा सहमा डरा सा रहता है - गुलज़ार
रविवार, 15 दिसंबर 2019
मुझको भी तरकीब सिखा कोई यार जुलाहे - गुलज़ार
मुझको भी तरकीब सिखा कोई यार जुलाहे
अक्सर तुझको देखा है कि ताना बुनते
जब कोई तागा टूट गया या ख़तम हुआ
फिर से बाँध के
और सिरा कोई जोड़ के उसमें
आगे बुनने लगते हो
तेरे इस ताने में लेकिन
इक भी गाँठ गिरह बुनकर की
रविवार, 1 दिसंबर 2019
कँधे झुक जाते हैं - गुलज़ार
कँधे झुक जाते है जब बोझ से इस लम्बे सफ़र के
हाँफ जाता हूँ मैं जब चढ़ते हुए तेज चढाने
साँसे रह जाती है जब सीने में एक गुच्छा हो कर
और लगता है दम टूट जायेगा यहीं पर।
गुरुवार, 29 अगस्त 2019
मानी - गुलज़ार
चौक से चलकर, मंडी से, बाज़ार से होकर
लाल गली से गुज़री है कागज़ की कश्ती
बारिश के लावारिस पानी पर बैठी बेचारी कश्ती
शहर की आवारा गलियों से सहमी-सहमी पूछ रही हैं
हर कश्ती का साहिल होता है तो
मेरा भी क्या साहिल होगा?
बुधवार, 19 जून 2019
धुआँ - गुलजार
बात सुलगी तो बहुत धीरे से थी, लेकिन देखते ही देखते पूरे कस्बे में 'धुआँ' भर गया। चौधरी की मौत सुबह चार बजे हुई थी। सात बजे तक चौधराइन ने रो-धो कर होश सम्भाले और सबसे पहले मुल्ला खैरूद्दीन को बुलाया और नौकर को सख़्त ताकीद की कि कोई ज़िक्र न करे। नौकर जब मुल्ला को आँगन में छोड़ कर चला गया तो चौधराइन मुल्ला को ऊपर ख़्वाबगाह में ले गई, जहाँ चौधरी की लाश बिस्तर से उतार कर ज़मीन पर बिछा दी गई थी। दो सफेद चादरों के बीच लेटा एक ज़रदी माइल सफ़ेद चेहरा, सफेद भौंवें, दाढ़ी और लम्बे सफेद बाल। चौधरी का चेहरा बड़ा नूरानी लग रहा था।
मुल्ला ने देखते ही 'एन्नल्लाहे व इना अलेहे राजेउन' पढ़ा, कुछ रसमी से जुमले कहे। अभी ठीक से बैठा भी ना था कि चौधराइन अलमारी से वसीयतनामा निकाल लाई, मुल्ला को दिखाया और पढ़ाया भी। चौधरी की आख़िरी खुवाहिश थी कि उन्हें दफ़न के बजाय चिता पर रख के जलाया जाए और उनकी राख को गाँव की नदी में बहा दिया जाए, जो उनकी ज़मीन सींचती है।
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