इस सड़ी गर्मी में अपना तो क्या अमरीका और ब्रिटेन जैसे बड़े बड़ों का तेल निकल गया, महाराज। बरसात न होने के कारण हमारे अन्नमय कोष में महँगाई और चोरबाजारी के पत्थर पड़ रहे हैं, हम बड़े चिंताग्रस्त और दुखी हैं; पर यदि अपनी उदारता को पसारा देकर सोचें तो हम क्या और हमारा दुख भी क्या, क्या पिद्दी, क्या पिद्दी का शोरबा। अस्ली संकटग्रस्त और दुखी तो अंग्रेज अमरीकी कूटनीतिज्ञ राजनैतिक बेचारे महाजनगण हैं कि जिनकी आशाओं की बरसात नहीं हुई और जिनके प्राणमय कोश में इस समय केवल बगदाद पैक्ट की चिंदियाँ ही फरफरा रही हैं। हाय, ये क्या से क्या हो गया संपादक जी। अपि नियति नटी, अरी निष्ठुरे, तू बड़ी कठोर, बदमस्त और अल्हड़ है। न राजा भोज को पहचाने, न गँगुआ तेली को; अपनी मस्ती में समभाव से और बिना अवसर देखे ही तू जिस-तिस के मिजाज की मूँछें उखाड़ लेती है या सीधे किसी की छाती पर ही वज्र-प्रहार करती है। हमें गुसाई जी पर भी इस समय क्रोध आ रहा है जो ''हानि-लाभ जीवन-मरण यश-अपयश विधि हाथ'' सौंप गए। इन संतों को भावावेश में चट से शाप या वरदान दे डालने की अवैज्ञानिक आदत होती थी, इनके ज्ञानमय कोश में इतनी भी सामाजिक-राजनैतिक चेतना और दूरदर्शिता न थी कि तेल देखते, तेल की धार देखते। इसके अलावा अपने पुराने कवियों को भी हम क्या कहें, न जाने क्या देखकर नियति को नटी कह गए। यह नटी होती तो भला मौका चूकती! यह अवसर तो भवों, आँखों, होठों और गर्दन पर शोखी और भोलेपन के दोहरे डोरे डाल, नैन नचा, ठोकर मार, फिर चट से आँखों में घोर विस्मय का भाव ला ठोड़ी पर ऊँगली रखकर कहने का था : ''उई अल्लाह ये क्या हो गया?'' फिर दोनों की चोटें सहलाती हुई नियति नटी आँखों में आँसू भर चेहरे पर मासूमियत का भाव लाकर कहती : ''माफ करना डैडी, माफ करना अंकल, मैं तो नाच रही थी। हाय ये मुझसे क्या भूल हो गई!'' फिर टपाटप आँसू टपकाने लगती। नियति रानी को वर्ष का सर्वश्रेष्ठ अभिनय-पुरस्कार मिलता, हम दुखियारे भारतीयों को भाग्य से वर्षा मिलती : अनाज के भाव गिरते। फसल अच्छी न होने से हमारा करेला यों ही क्या कम कड़वा था कि ऊपर से महायुद्ध की नीम भी चढ़ने लगी। जाने कैसे और क्यों कर जी रहे हैं हम, ऊपर से ये लड़ाई की धमकी हो गई।
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शनिवार, 18 जनवरी 2020
मंगलवार, 14 जनवरी 2020
सिकंदर हार गया - अमृतलाल नागर

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