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मंगलवार, 27 अगस्त 2019

सूना घर - दुष्यंत कुमार

सूने घर में किस तरह सहेजूँ मन को।
पहले तो लगा कि अब आईं तुम, आकर
अब हँसी की लहरें काँपी दीवारों पर
खिड़कियाँ खुलीं अब लिये किसी आनन को।

पर कोई आया गया न कोई बोला
खुद मैंने ही घर का दरवाजा खोला
आदतवश आवाजें दीं सूनेपन को।