स्वयं शून्य
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अहमद फ़राज़
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अहमद फ़राज़
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शुक्रवार, 6 सितंबर 2019
मैं और तू - अहमद फ़राज़
रोज़ जब धूप पहाड़ों से उतरने लगती
कोई घटता हुआ बढ़ता हुआ बेकल साया
एक दीवार से कहता कि मेरे साथ चलो।
और ज़ंजीरे-रफ़ाक़त से गुरेज़ाँ दीवार
अपने पिंदार के नश्शे में सदा ऐस्तादा
ख़्वाहिशे-हमदमे-देरीना प’ हँस देती थी।
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