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शनिवार, 21 दिसंबर 2019

पत्नी के लिए – ऑस्कर वाइल्ड

मैं लिख नहीं पाऊँगा
भव्य भूमिका 
मेरे गीत के प्रस्तावाना के रूप में।
एक कवि से
कविता की यात्रा
के बीच ही 
है साहस कुछ कहने का।

फूलों से गिर हुए
इन पँखुड़ियों में से ही
लगता है उचित एक कोई।
प्रेम अनुगूँजित होता रहेगा उसी से
जब तक 
पँखुड़ी वो बालों में तुम्हारे 
सुशोभित हो ना जाए।

रविवार, 15 दिसंबर 2019

मुझको भी तरकीब सिखा कोई यार जुलाहे - गुलज़ार

मुझको भी तरकीब सिखा कोई यार जुलाहे 
अक्सर तुझको देखा है कि ताना बुनते 
जब कोई तागा टूट गया या ख़तम हुआ 
फिर से बाँध के 
और सिरा कोई जोड़ के उसमें 
आगे बुनने लगते हो 
तेरे इस ताने में लेकिन 
इक भी गाँठ गिरह बुनकर की

सोमवार, 9 दिसंबर 2019

क्योंकि मैं रुक ना सकी मृत्यु के लिए - एमिली डिकिंसन

क्योंकि
मैं रुक ना सकी
मृत्यु के लिए
दयालुता से मगर
इन्तजार उसने मेरा किया
और रूकी जब 
तो हम और अमरत्व
बस रह गए।

सोमवार, 29 जुलाई 2019

ग़रीबी - पाब्लो नेरूदा

आह! नहीं चाहती हो तुम
कि डरी हुई हो 
ग़रीबी से तुम;
घिसे जूतों में नहीं जाना चाहती हो बाज़ार तुम
और नहीं चाहती हो लौटना उसी पुराने कपड़े में। 

मेरी प्रेयसी! पसन्द नहीं है हमें,
कि दिखें हमें उस हाल में, है जो पसंद कुबेरों को;
तंगहाली हमारी। 

बुधवार, 19 जून 2019

धुआँ - गुलजार

बात सुलगी तो बहुत धीरे से थी, लेकिन देखते ही देखते पूरे कस्बे में 'धुआँ' भर गया। चौधरी की मौत सुबह चार बजे हुई थी। सात बजे तक चौधराइन ने रो-धो कर होश सम्भाले और सबसे पहले मुल्ला खैरूद्दीन को बुलाया और नौकर को सख़्त ताकीद की कि कोई ज़िक्र न करे। नौकर जब मुल्ला को आँगन में छोड़ कर चला गया तो चौधराइन मुल्ला को ऊपर ख़्वाबगाह में ले गई, जहाँ चौधरी की लाश बिस्तर से उतार कर ज़मीन पर बिछा दी गई थी। दो सफेद चादरों के बीच लेटा एक ज़रदी माइल सफ़ेद चेहरा, सफेद भौंवें, दाढ़ी और लम्बे सफेद बाल। चौधरी का चेहरा बड़ा नूरानी लग रहा था।

मुल्ला ने देखते ही 'एन्नल्लाहे व इना अलेहे राजेउन' पढ़ा, कुछ रसमी से जुमले कहे। अभी ठीक से बैठा भी ना था कि चौधराइन अलमारी से वसीयतनामा निकाल लाई, मुल्ला को दिखाया और पढ़ाया भी। चौधरी की आख़िरी खुवाहिश थी कि उन्हें दफ़न के बजाय चिता पर रख के जलाया जाए और उनकी राख को गाँव की नदी में बहा दिया जाए, जो उनकी ज़मीन सींचती है।

शुक्रवार, 7 जून 2019

प्रोफेसर - मुश्ताक़ अहमद यूसुफ़ी

आज फिर उनके सम्मान में हजरत रंजूर अकबराबादी एडीटर, प्रिंटर, पब्लिशर व प्रूफरीडर त्रैमासिक 'नया क्षितिज' ने एक शाम-भोज दिया था।

जिस दिन से प्रोफेसर काजी अब्दुल कुद्दूस, एम.ए., बी.टी. गोल्ड मैडलिस्ट (मिर्जा का कहना है कि यह पदक उन्हें मिडिल में बिना नागा उपस्थिति पर मिला था) यूनिवर्सिटी की नौकरी से त्यागपत्र देने के बाद बैंक ऑफ चाकसू लिमिटेड में डायरेक्टर, पब्लिक रिलेशन्स एंड एडवरटाइजिंग की हैसियत में धाँस दिए गए थे, उनके सम्मान में इस तरह के शाम-भोज, स्वागत-समारोह और डिनर दैनिक दफ्तरी जीवन का तत्व बल्कि जीवन का अंग बन गए थे। घर पर नेक कमाई की रोटी तो केवल बीमारी के समय में ही बरदाश्त करते थे, वरना दोनों समय स्वागत-भोज ही खाते थे। बैंक की नौकरी प्रोफेसरश्री के लिए एक अजीब अनुभव साबित हुई, जिसका मूल्य वो हर तरह से महीने की तीस तारीख को वसूल कर लेते थे।

रविवार, 2 जून 2019

चौकीदार - मिरियम वेडर

संकरी गलियों से गुजरते हुए
धीमे और सधे कदमों से
लहरायी थी चौकीदार ने लालटेन अपनी 
और कहा था , “सब कुछ ठीक है!"

बैठी बंद जाली के पीछे औरत एक

नहीं था पास जिसके बेचने को कुछ भी;
रुककर दरवाजे पर उसके 
चौकीदार चिल्लाया जोर से, “सब कुछ ठीक है!”