माणिक वर्मा लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं
माणिक वर्मा लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं

बुधवार, 8 अप्रैल 2020

तुम्हारी ऐसी तैसी - माणिक वर्मा

हरा भरा यह देश तुम्हारी ऐसी तैसी
फिर भी इतने क्लेश तुम्हारी ऐसी तैसी

बंदर तक हैरान तुम्हारी शक्ल देखकर
किसके हो अवशेष तुम्हारी ऐसी तैसी

आजादी लुट गई भांवरों के पड़ते ही
ऐसे पुजे गणेश तुम्हारी ऐसी तैसी

गुरुवार, 2 अप्रैल 2020

रात के बारह बजे - माणिक वर्मा

रूप की जब की बड़ाई, रात के बारह बजे
शेरनी घेरे में आई, रात के बारह बजे

कल जिसे दी थी विदाई, रात के बारह बजे
वो बला फिर लौट आई, रात के बारह बजे

हम तो अपने घर में बैठे तक रहे थे चांद को
और चांदनी क्यों छत पे आई, रात के बारह बजे

बुधवार, 25 मार्च 2020

मांगीलाल और मैंने - माणिक वर्मा

लोकतंत्र के लुच्चों, दगाबाज टुच्चों!
ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और हरिजन,
जब हम हार गए तो काहे का इलेक्शन,
जिस देश की जनता हो तुम जैसी
वहां काहे की डेमोक्रेसी?

भितरघातियो, जयचंद के नातियों!
तुमने अंगूरी पीकर अंगूठा दिखाया है,
आज मुझको नहीं
मिनी महात्मा गांधी को हराया है!
हमारी हार बीबीसी लंदन से ब्रॉडकास्ट करवाई,
और ये खबर आज तक किसी अखबार में नहीं आई!
देश को आजादी किसने दिलवाई?
मांगीलाल और मैंने!