बुधवार, 8 अप्रैल 2020

तुम्हारी ऐसी तैसी - माणिक वर्मा

हरा भरा यह देश तुम्हारी ऐसी तैसी
फिर भी इतने क्लेश तुम्हारी ऐसी तैसी

बंदर तक हैरान तुम्हारी शक्ल देखकर
किसके हो अवशेष तुम्हारी ऐसी तैसी

आजादी लुट गई भांवरों के पड़ते ही
ऐसे पुजे गणेश तुम्हारी ऐसी तैसी

हमें बुढ़ापा मिला जवानी में और तुमको
जब देखो तब फ्रेश तुम्हारी ऐसी तैसी

देश बिके तो बिके ठाठ से कर्जा लेकर
घूमो खूब विदेश तुम्हारी ऐसी तैसी

देश भक्त हो अगर,दान कर दो सेना को
स्वीस बैक का कैश, तुम्हारी ऐसी-तैसी

अगर स्वर्ग में गए,वहाँ भी नहीं मिलेगा
इतना प्यारा देश,तुम्हारी ऐसी-तैसी

पहले अपने लाल कटाओ सीमाओं पर
फिर देना उपदेश तुम्हारी ऐसी तैसी

चंदन लकड़ी होय जले तब चिता तुम्हारी
मरकर भी ये ऐश तुम्हारी ऐसी तैसी

खुद रूढ़ी से ग्रस्त विश्व को तुम क्या दोगे
मुक्ति का संदेश तुम्हारी ऐसी तैसी
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माणिक वर्मा


1 टिप्पणी:

  1. वाह...
    नेता लोगों के कितने ठाठ-बाट है. सब हमारे दिए हुए स्वाद हैं.
    देश बहुत सम्पन है लेकिन इनकी ऐसीतैसी हो रखी है सब.
    स्वाद आ गये जनाब पढ़ कर.
    नई रचना- एक भी दुकां नहीं थोड़े से कर्जे के लिए 

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