जीने की
लत
जो हमने
है पाली
जीने की
लत……….॥
जीता हूँ
दिल पर
बोझ लिए
अब
रात अंधेरी
है काटे हरदम।
जब बोझिल
कुछ कदम बढाऊँ
राह मुझे
छोड़े जाती है॥
जीने की
लत……….॥
इक
पल
मुझको
चैन मिले जो
सिलवटें मगर
नज़र कुछ आती
हैं।
कुछ
चुप रहतीं
हैं
कुछ
कहतीं
फ़िर हाथ
पकड़कर
जाने कहाँ
जीने की
लत……….॥
बहुत-बहुत धन्यवाद कुलदीप जी।
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुंदर प्रस्तुति , राजीव भाई धन्यवाद !
जवाब देंहटाएंInformation and solutions in Hindi ( हिंदी में समस्त प्रकार की जानकारियाँ )
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बहुत-बहुत धन्यवाद अवस्थी जी।
हटाएंबहुत-बहुत धन्यवाद जोशी जी
जवाब देंहटाएंसादर धन्यवाद शास्त्री जी।
जवाब देंहटाएंलत तो लत है -छुटकारा कहाँ !
जवाब देंहटाएंजी समहत हूँ आपसे।
हटाएंBahut sunder prastuti .... Lat ke aaage jeet hai :)
जवाब देंहटाएंधन्यवाद परी जी।
हटाएंजीना सिर्फ अपने लिए ही नहीं , अपनों के लिए भी जीना पड़ता है ..
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया ...
जी सहमत हूँ कि इन्सान को अपने लिए ही नहीं बल्कि अपनों के लिए जीना पड़ता है। या फिर कहें तो बहुत हद इन्सान अपनों के लिए ही जीता है।
हटाएंबहुत सुन्दर और सटीक रचना...
जवाब देंहटाएंप्रोत्साहन के लिए बहुत बहुत धन्यवाद
हटाएंबहुत सुंदर मन को छूने वाली -----------
जवाब देंहटाएंधन्यबद,
प्रोत्साहन के लिए बहुत बहुत धन्यवाद सूबेदार जी
हटाएंबहुत सुन्दर भावों को शब्दों में समेट कर रोचक शैली में प्रस्तुत करने का आपका ये अंदाज बहुत अच्छा लगा,
जवाब देंहटाएंबहुत-बहुत धन्यवाद संजय जी। प्रयास किया है और पसन्द आया तो मेरे लिए हर्ष की बात है
हटाएंजीने की लत कई मुकाम पाने की कोशिश जिन्दा रखती है ...
जवाब देंहटाएंजी सच कहा आपने कि ये जीने की लत ही आपको नई नई दुनिया और मंजिलें दिखाती है।
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