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शुक्रवार, 27 मार्च 2020

सोभित कर नवनीत लिए - अमृत राय

सोभित कर नवनीत लिए - अमृत राय हमारे बाप-दादे भी कैसे घामड़ थे जो मक्खन खाते थे। बताइए, मक्खन भी कोई खाने की चीज है! खट्टी-खट्टी डकारें आती हैं। पेट तूंबे की तरह फूल जाता है और गुड़गुड़ाने लगता है - कि जैसे अली अकबर सरोद बजा रहे हों या कोई भूत पेट के भीतर बैठा हुक्का पी रहा हो। और वायु तो इतनी बनती है, इतनी बनती है, कि चाहो तो उससे पवन-चक्की चला लो! क्या फायदा ऐसी चीज खाने से। दो ही चार महीनों में शरीर फूलकर कुप्पा हो जाता है - और अच्छा भला आदमी मिठाईवाला नजर आने लगता है, ढाई मन गेहूँ के बोरे जैसी तोंद और मुग्दर जैसे हाथ-पाँव। सिर्फ नजर आने की बात हो तब भी कोई बात नहीं। मुश्किल तो तब पैदा होती है जब पाँच कदम चलते ही दम फूलने लगता है जो इस बात की अलामत है कि दिल के लिए अब इस पहाड़ जैसी लहास को ढो पाना कठिन है। और अगर तब भी आदमी न चेता तो दिल थककर बैठ जाता है। उसी का नाम हार्ट-फेल है।