प्रतिलिपि डाट काम पर प्रकाशित एक कविता आपकी नज़र
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अकेले ही अकेले हूँना साथ कोई है मेरे
लोग सारे चले गये
तन्हा मैं ही रह गया।
राही सभी चले गये
देखता मैं रह गया
दूर गया कारवाँ
अकेला ही ठहर गया।
फैसला ये अज़ीब है
लोगों में मैं बँट गया
और जाकर रूका वहाँ
सब कुछ जहाँ थम गया।
अकेले ही अकेले हूँ
ना साथ कोई है मेरे॥
© राजीव उपाध्याय
फैसला ये अज़ीब है
लोगों में मैं बँट गया
और जाकर रूका वहाँ
सब कुछ जहाँ थम गया।
अकेले ही अकेले हूँ
ना साथ कोई है मेरे॥
© राजीव उपाध्याय