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गुरुवार, 11 दिसंबर 2014

अकेले ही अकेले हूँ

प्रतिलिपि डाट काम पर प्रकाशित एक कविता आपकी नज़र
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अकेले ही अकेले हूँ
ना साथ कोई है मेरे
लोग सारे चले गये
तन्हा मैं ही रह गया।

राही सभी चले गये
देखता मैं रह गया
दूर गया कारवाँ
अकेला ही ठहर गया।

फैसला ये अज़ीब है
लोगों में मैं बँट गया
और जाकर रूका वहाँ
सब कुछ जहाँ थम गया।

अकेले ही अकेले हूँ
ना साथ कोई है मेरे॥
© राजीव उपाध्याय


सोमवार, 20 अक्टूबर 2014

हवा हूँ मैं या झोका कोई

हवा हूँ मैं या झोका कोई
चल रहीं हैं या ठहर गयीं

ये अंज़ान सांसें हैं रोज़ पुछ्तीं
ज़बाव कोई आजकल मिलता नहीं

ज़ज्बात अब बेअसर फ़िरते हैं
मुम्क़िन नहीं दिल बहलाना कहीं

आईने से भी चेहरा चुराता हूं
नज़रों से मेरी नज़रें न मिल जाएं कहीं।

इबादत मेरी आजकल
बहक बहक जाती हैं कहीं
ढुंढता हूं जब कमरे में बेतरह
सिलवटें कोई नज़र आती नहीं।
© राजीव उपाध्याय

शनिवार, 27 सितंबर 2014

हमसफ़र चाहता हूँ

हमसफ़र चाहता हूँ,
बस इक तेरी नज़र चाहता हूँ।
जिन्दगी कुछ यूँ हो मेरी,
बस इक घर चाहता हूँ॥
हमसफ़र चाहता हूँ॥

कदम दो कदम जो चलना जिन्दगी में
कदमों पे तेरे, कदम चाहता हूँ।
लबों पे खुशी हो तेरे सदा
ऐसी कोई कसम चाहता हूँ।
हमसफ़र चाहता हूँ॥

राह--जिन्दगी होगी हसीन
ग़र संग हम दोनों चलें
फूलों में देखो, हैं रंग कितने
उन्हीं में जीवन बसर चाहता हूँ।
हमसफ़र चाहता हूँ॥

बुधवार, 24 सितंबर 2014

चलना मेरा काम

राही हूँ मैं, चलना मेरा काम
चलते जाना, है मेरा अन्जाम।
राही हूँ मैं, चलना मेरा काम॥

दौड़ लगाना, फिर हाँफ जाना
रुकना नहीं, है मेरा ईनाम।
दरिया और मरु, सब बेगाने
ज़ोर लगाना, मेरा इन्तज़ाम
राही हूँ मैं, चलना मेरा काम॥

हार जीत का, मतलब क्या
राह जब, है मेरा मुकाम।
थकना मैंने, सीखा ही नहीं
मिट जाना, है मेरा इन्तकाम।
राही हूँ मैं, चलना मेरा काम॥

© राजीव उपाध्याय

मंगलवार, 23 सितंबर 2014

जाना है मुझको

जाना है मुझको, मैं चला जाऊँगा
चाहो ना चाहो, पर याद आऊँगा।

जब-जब गुँजेगी आवाज़ तेरी,
जब नाम तेरा लिया जाएगा
हर सुर में, हर बोल को
मैं संग तेरे गुनगुनाऊँगा।
चाहो ना चाहो, पर याद आऊँगा॥

मंजिल दूर, राह ना आसान है
कभी चलूँगा, कभी ठहर जाऊँगा
मैं सफ़र का, गुमनाम मुसाफ़िर तेरा
हर पल साया बन, साथ निभाऊँगा।
जाना है मुझको, मैं चला जाऊँगा,
चाहो ना चाहो, पर याद आऊँगा॥

©राजीव उपाध्याय


शनिवार, 20 सितंबर 2014

शायद ये सफ़र यहीं तक था

राह हमारी अलग हुई अब
शायद ये सफ़र यहीं तक था।

साथ चलेंगे बातें की थी
अनजाने से अनजाने में
आँख खुली तो देखा पाया
छुपकर निकले बेगाने से।
शायद ये सफ़र यहीं तक था॥

दिन भी निकला रातों जैसा
आँखों में कोई रतौंधी सी
हाथों से छूकर जब देखा
काली पट्टी बंधी निकली।
शायद ये सफ़र यहीं तक था॥

© राजीव उपाध्याय


शनिवार, 17 दिसंबर 2011

जो सब चाहते थे, वही कर रहा हूँ।

जो सब चाहते थे, वही कर रहा हूँ।
खुशियों को तेरी, नज़र कर रहा हूँ।।


तमाम उम्र्, जो सीखा था मैंने।
भूलाकर सब, नया शहर कर रहा हूँ॥

ये जो कहानी, कही अनकही सी।
लबों पे तेरे, लज़र कर रह हूँ॥

धूँधला ही सही, कोरा काग़ज नया हूँ।
लफ़्ज़ों पे तेरे बशर कर रहा हूँ॥
©राजीव उपाध्याय

गुरुवार, 8 दिसंबर 2011

ये आज, जो आज है

ये आज, जो आज है
कल अतीत बन जाएगा।
बारिश के बादलों सा
कुछ बरसेगा, कुछ रह जाएगा।



हर बात, हर हस्ती
ख़ाक में मिल जाएगी।
ना तूम होगे, ना मैं रहूंगा
बस प्रेम अमर रह जाएगा।
ये आज जो आज है
कल अतीत बन जाएगा।।
©राजीव उपाध्याय

रविवार, 4 दिसंबर 2011

सब सोते हैं, मैं रोता हूँ

सब सोते हैं, मैं रोता हूँ
सब जगते हैं, मैं सोता हूँ।



इश्क ने जब से है रंगत बदली
डुबा डुबा सा रहता हूँ
घाव मरहम है अब जख़्मों का
ख़ून से अपने यूँ धोता हूँ।
सब सोते हैं, मैं रोता हूँ।।

कोई तल्ख़ी अब ना रही
आँखों में अब तूम रहती हो
बरसों बीत गए, तूमसे मिले-बिछड़े
पर अब भी सांसों में बची हो।
सब कुछ खोकर तूमको पाता हूँ
मैं नहीं अब, बस तूममें जीता हूँ।
सब सोते हैं, मैं रोता हूँ।।
© राजीव उपाध्याय