मंगलवार, 23 सितंबर 2014

जाना है मुझको

जाना है मुझको, मैं चला जाऊँगा
चाहो ना चाहो, पर याद आऊँगा।

जब-जब गुँजेगी आवाज़ तेरी,
जब नाम तेरा लिया जाएगा
हर सुर में, हर बोल को
मैं संग तेरे गुनगुनाऊँगा।
चाहो ना चाहो, पर याद आऊँगा॥

मंजिल दूर, राह ना आसान है
कभी चलूँगा, कभी ठहर जाऊँगा
मैं सफ़र का, गुमनाम मुसाफ़िर तेरा
हर पल साया बन, साथ निभाऊँगा।
जाना है मुझको, मैं चला जाऊँगा,
चाहो ना चाहो, पर याद आऊँगा॥

©राजीव उपाध्याय


12 टिप्‍पणियां:

  1. शुभ प्रभात भाई राजीव जी
    अच्छी रचना
    सादर

    जवाब देंहटाएं
  2. बेशक बहुत सुन्दर लिखा और सचित्र रचना ने उसको और खूबसूरत बना दिया है.

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. जी भास्कर जी प्रयास करता हूँ कि अच्छा लिखूँ और साथ ही सही चित्र भी हो। बहुत-बहुत धन्यवाद आपको।

      हटाएं
  3. बहुत ही मंजुल, कोमल एवं भावपूर्ण रचना ! अति सुन्दर !

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. जी बहुत-बहुत धन्यवाद। आपसे नम्र निवेदन है कि अगर कोई त्रुटि हो तो बताएँ। यही मार्गदर्शन आगे बढ़ने में सहयोग देगा। पुनश्च सादर धन्यवाद

      हटाएं