चाहो ना चाहो, पर याद आऊँगा।
जब-जब गुँजेगी आवाज़ तेरी,
जब नाम तेरा लिया जाएगा
हर सुर में, हर बोल को
मैं संग तेरे गुनगुनाऊँगा।
चाहो ना चाहो, पर याद आऊँगा॥
मंजिल दूर, राह ना आसान है
कभी चलूँगा, कभी ठहर जाऊँगा
मैं सफ़र का, गुमनाम मुसाफ़िर तेरा
हर पल साया बन, साथ निभाऊँगा।
जाना है मुझको, मैं चला जाऊँगा,
चाहो ना चाहो, पर याद आऊँगा॥
©राजीव उपाध्याय
शुभ प्रभात भाई राजीव जी
जवाब देंहटाएंअच्छी रचना
सादर
सुप्रभात यशोदा जी। जी बहुत-बहुत धन्यवाद।
हटाएंबेशक बहुत सुन्दर लिखा और सचित्र रचना ने उसको और खूबसूरत बना दिया है.
जवाब देंहटाएंजी भास्कर जी प्रयास करता हूँ कि अच्छा लिखूँ और साथ ही सही चित्र भी हो। बहुत-बहुत धन्यवाद आपको।
हटाएंबहुत ही मंजुल, कोमल एवं भावपूर्ण रचना ! अति सुन्दर !
जवाब देंहटाएंजी बहुत-बहुत धन्यवाद। आपसे नम्र निवेदन है कि अगर कोई त्रुटि हो तो बताएँ। यही मार्गदर्शन आगे बढ़ने में सहयोग देगा। पुनश्च सादर धन्यवाद
हटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति ...
जवाब देंहटाएंधन्यवाद कविता जी। प्रयास कर रहा हूँ।
हटाएंWaah bahut khubsurat rachna
जवाब देंहटाएंधन्यवाद परवीन जी।
हटाएंसुंदर अभिव्यक्ति! साभार! राजीव जी!
जवाब देंहटाएंधरती की गोद
बहुत बहुत धन्यवाद
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