मेरा नाम 'टाइगर' है, गो शक्ल-सूरत और रंग-रूप में मेरा किसी भी शेर या 'सिंह' से कोई साम्य नहीं। मैं दानवीर लाला अमुक-अमुक का प्रिय सेवक हूँ; यद्यपि वे मुझे प्रेम से कभी-कभी थपथपाते हुए अपना मित्र और प्रियतम भी कह देते हैं। वैसे मैं किस लायक हूँ? मतलब यह है कि लालाजी का मुझ पर पुत्रवत प्रेम है। नीचे मैं अपने एक दिन के कार्यक्रम का ब्यौरा आपके मनोरंजनार्थ उपस्थित करता हूँ -
6 बजे सवेरे - घर की महरी बहुत बदमाश हो गई है। मेरी पूँछ पर पैर रख कर चली गई। अंधी हो गई क्या? और ऊपर से कहती है - अँधेरा था। किसी दिन काट खाऊँगा। गुर्र-गुर्र... अच्छा-चंगा हड्डीदार सपना देख रहा था और यह महरी आ गई - इसने मेरे सपने के स्वर्ण-संसार पर पानी फेर दिया। विचार-श्रृंखला टूट गई। बात यह है कि मैं एक शाकाहारी घर में पल रहा हूँ। अत: कभी-कभी मांसाहार का सपना आ जाना पाप नहीं! यह मेरी अतृप्त वासना है, ऐसा परसों मालिक से मिलने को आए एक बड़े मनोवैज्ञानिकजी कह रहे थे।... फिर सो गया।