हवा हूँ मैं या झोका कोई
चल रहीं हैं या ठहर गयीं
ये अंज़ान सांसें हैं रोज़ पुछ्तीं
ज़बाव कोई आजकल मिलता नहीं।
ज़ज्बात अब बेअसर फ़िरते हैं
मुम्क़िन नहीं दिल बहलाना कहीं
आईने से भी चेहरा चुराता हूं
नज़रों से मेरी नज़रें न मिल जाएं कहीं।
इबादत मेरी आजकल
बहक बहक जाती हैं कहीं
ढुंढता हूं जब कमरे में बेतरह
सिलवटें कोई नज़र आती नहीं।
© राजीव उपाध्याय
चल रहीं हैं या ठहर गयीं
ये अंज़ान सांसें हैं रोज़ पुछ्तीं
ज़बाव कोई आजकल मिलता नहीं।
ज़ज्बात अब बेअसर फ़िरते हैं
मुम्क़िन नहीं दिल बहलाना कहीं
आईने से भी चेहरा चुराता हूं
नज़रों से मेरी नज़रें न मिल जाएं कहीं।
इबादत मेरी आजकल
बहक बहक जाती हैं कहीं
ढुंढता हूं जब कमरे में बेतरह
सिलवटें कोई नज़र आती नहीं।
© राजीव उपाध्याय
बहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंआपका ब्लॉग यहाँ पर भी हैँ।http://safaraapka.blogspot.in/
मेरा ब्लॉग
हटाएंबहुत बहुत धन्यवाद
टंकण में मात्राऐं गड़बड़ा रही हैं ध्यान रखें ।
जवाब देंहटाएंसुंदर भाव !
जी सहमत हूँ। तकनीकी समस्या है शायद। ध्यान दिलाने के लिए साधुवाद।प्रोत्साहन के लिए हार्दिक आभार।
हटाएंBahut hi sunder rachna !!
जवाब देंहटाएंधन्यवाद परी जी।
हटाएंअच्छी रचना।
जवाब देंहटाएंदीपावली की अशेष शुभकामनाएं !
हार्दिक धन्यवाद। दिवाली मंगलमय हो।
हटाएंअनुपम प्रस्तुति....आपको और समस्त ब्लॉगर मित्रों को दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएं...
जवाब देंहटाएंनयी पोस्ट@बड़ी मुश्किल है बोलो क्या बताएं
बहुत धन्यवाद्। आपको भी हार्दिक शुभकामना।
हटाएंख़ूबसूरत अभिव्यक्ति… मंगलकामनाएँ...
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत धन्यवाद हिमकर जी।
हटाएंसहज व सरल अभिव्यक्ति.......
जवाब देंहटाएंhttp://savanxxx.blogspot.in
धन्यवाद सावन जी।
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