गुरुवार, 2 अप्रैल 2020

रात के बारह बजे - माणिक वर्मा

रूप की जब की बड़ाई, रात के बारह बजे
शेरनी घेरे में आई, रात के बारह बजे

कल जिसे दी थी विदाई, रात के बारह बजे
वो बला फिर लौट आई, रात के बारह बजे

हम तो अपने घर में बैठे तक रहे थे चांद को
और चांदनी क्यों छत पे आई, रात के बारह बजे

देखने को दिन में ही मनहूस चेहरे कम न थे
तूने क्यूं सूरत दिखाई, रात के बारह बजे

चोरियां करने को निकलीं जब पुलिस की टोलियां
चोर ने सिटी बजाई, रात के बारह बजे

मैं तो दिन के 10 बजे पैदा हुआ था भाइयों
दे रहे हो तुम बधाई, रात के बारह बजे

घर के मंदिर का भी पुराना शंख बजने लगा
उसने जब घंटी बजाई, रात के बारह बजे

ये बड़े लोगों की महफिल है यहां मत पूछना
कौन है किसकी लुगाई, रात के बारह बजे

कैसे मंदिर के बगल में रहती दारू की दुकान
पी के भक्तों ने हटाई, रात के बारह बजे

मल्लिका को देखकर बाबा ने खुश होकर कहा
योग क्रिया रंग लाई, रात के बारह बजे

जाने कब आतंकवादी मार दें गोली मुझे
इसलिए लुंगी सिलाई, रात के बारह बजे

बज गये जनता के बारह धन्य हो बापू तुम्हें
ख़ूब आजादी दिलाई, रात के बारह बजे

तब हुआ एहसास मुझको हो गई बेटी जवान
कंकरी जब घर पे आई, रात के बारह बजे
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माणिक वर्मा

3 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुंदर ग़ज़ल। मेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है।

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  2. जी नमस्ते,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (03-04-2020) को "नेह का आह्वान फिर-फिर!" (चर्चा अंक 3660) पर भी होगी।

    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।

    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।

    आप भी सादर आमंत्रित है

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  3. बहुत सुन्दर ग़ज़ल प्रस्तुति।
    श्री राम नवमी की हार्दिक शुभकामनाएँ।

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