धूप में निकलो घटाओं में
नहाकर देखो
ज़िन्दगी क्या है, किताबों को
हटाकर देखो।
सिर्फ आँखों से ही दुनिया
नहीं देखी जाती
दिल की धड़कन को भी बीनाई
पत्थरों में भी ज़बां होती है
दिल होते हैं
अपने घर के दरो-दीवार
सजाकर देखो।
वो सितारा है चमकने दो
यूं ही आँखों में
क्या ज़रूरी है उसे जिस्म
बनाकर देखो।
फ़ासला नज़रों का धोका भी
तो हो सकता है
चाँद जब चमके ज़रा हाथ
बढाकर देखो।
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आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (26-06-2019) को "करो पश्चिमी पथ का त्याग" (चर्चा अंक- 3378) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
सादर धन्यवाद सर।
हटाएंसादर धन्यवाद।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर
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