सोमवार, 24 जून 2019

ग़ज़ल लिख रहे हैं - रजनी मल्होत्रा (नैय्यर)

रदीफ़ का पता ना काफ़िये का 
फिर भी ग़ज़ल लिख रहे हैं॥ 

दुनिया के चलन में हो रहा जो 
उसी झूठ को सीख रहे हैं॥ 

देखिये ताब टूट जाने से 
गूंगे भी अब चीख रहे हैं॥ 

जो बोते रहे मेरी राह में कांटे 
आज फूल बनकर बिछ रहे हैं॥
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रजनी मल्होत्रा (नैय्यर)
जन्म: ७ जून, कुमंदी ग्राम, पलामू, झारखण्ड
चार काव्य संग्रह: 'स्वप्न मरते नहीं ', 'ह्रदय तारों का स्पन्दन', 'पगडंडियाँ' व 'मृगतृष्णा'
विभिन्न पत्र -पत्रिकाओं में प्रकाशित
अनेकों पुरस्कार
भाषा लेखन: हिंदी, पंजाबी, उर्दू.
लेखन: गीत, ग़ज़ल, कहानियां व कविताएँ.
शिक्षा: हिंदी व इतिहास में स्नातकोत्तर। हिंदी में पी.एच. डी. चल रही।
सम्प्रति: संगणक विज्ञान की शिक्षिका
वर्तमान पता: बोकारो (झारखण्ड)
मोबाइल नं: 9576693153, 9470190089

10 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (25-06-2019) को "बादल करते शोर" (चर्चा अंक- 3377) पर भी होगी।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  2. ... बेहद प्रभावशाली अभिव्यक्ति है ।

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