सूरज! तू क्या संग लाया है?
आशाओं को,
क्या पीली किरणों में बिखराया है?
सूरज! तू क्या संग लाया है?
सांसें जो
बोझिल हैं अब तक
उनको क्या तू सहलाया है?
क्या किरणें तेरी
ज्योति नई भर लाई हैं?
चंचल तन को क्या
स्निग्ध सुधा से नहलाई हैं?
सूरज! तू क्या संग लाया है?
बहुत कुछ ले के आती हैं सूरज की किरनें ... महसूस हो सके तो जीवन की ऊर्जा और प्रेरणा होती हैं इनमें ...
जवाब देंहटाएंजी सहमत हूँ आपसे।
हटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंRecent Post ..उनकी ख्वाहिश थी उन्हें माँ कहने वाले ढेर सारे होते
http://sanjaybhaskar.blogspot.in/2014/09/blog-post_28.html#links
धन्यवाद मित्र। आपने उत्साह बढाया। जी आपकी रचना बहुत अच्छी है।
हटाएंबहुत सुंदर प्रस्तुति.
जवाब देंहटाएंइस पोस्ट की चर्चा, रविवार, दिनांक :- 12/10/2014 को "अनुवादित मन” चर्चा मंच:1764 पर.
आपको सादर आभार राजीव जी कि आपने कविता स्थान दिया।
हटाएंBahut hi sunder prastuti .... Suraj urja ka strot hai fir chaahe aashaao ka ho ya kuch aur ... Umdaaa ...lajawaab !!!
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत धन्यवाद परी जी। जिसे मैंने लिखा उसे आपने मेरी आँखों में जैसे झाँक कर देख लिया। सादर आभार।
हटाएंबहुत सुंदर अभिव्यक्ति...
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत धन्यवाद हिमकर जी।
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