कह सकता नहीं - राजीव उपाध्याय
बहुत कुछ हैजो कहना चाहता हूँकह सकता नहीं मगरकि रौशन हैं कई चुल्हेमेरी इस एक चुप्पी पर!हर बार कोई आकर कहेये निषिद्ध हैऐसा कहाँ होता?इसलिएकुछ कहानियों कोरेत हो जाने देता हूँकि शायद उस रेत सेकोई कलाकारतस्वीरें तो बनाता होगा!-----------------------------
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें