मंगलवार, 8 मार्च 2022

कह सकता नहीं - राजीव उपाध्याय

बहुत कुछ है
जो कहना चाहता हूँ
कह सकता नहीं मगर
कि रौशन हैं कई चुल्हे
मेरी इस एक चुप्पी पर!

हर बार कोई आकर कहे
ये निषिद्ध है
ऐसा कहाँ होता?
इसलिए
कुछ कहानियों को
रेत हो जाने देता हूँ
कि शायद उस रेत से
कोई कलाकार
तस्वीरें तो बनाता होगा!
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