मेरी कहानी में
कई किरदार हैं;
कुछ तनकर खडे रहते हैं
और झुके रहते हैं कुछ सदा।
कुछ बेलगाम बोलते रहते हैं
कुछ बेजुबान जीव,
कुछ बातें बडी करते हैं
और कुछ बदजुबान।
हर किरदार
जब करीब आता है मेरे
कुछ ना कुछ कहता है
पर्दे के पीछे खडा होकर मगर
या फिर मुखौटा से मिलाता है मुझे
और जब
मैं पर्दे के पीछे जाता
या उतार देता मुखौटा उनका
कोई किरदार नहीं दिखता
कोई चेहरा नहीं होता
कि आइने में बस
मेरा चेहरा दिखता है।
-----------------------------
कई किरदार हैं;
कुछ तनकर खडे रहते हैं
और झुके रहते हैं कुछ सदा।
कुछ बेलगाम बोलते रहते हैं
कुछ बेजुबान जीव,
कुछ बातें बडी करते हैं
और कुछ बदजुबान।
हर किरदार
जब करीब आता है मेरे
कुछ ना कुछ कहता है
पर्दे के पीछे खडा होकर मगर
या फिर मुखौटा से मिलाता है मुझे
और जब
मैं पर्दे के पीछे जाता
या उतार देता मुखौटा उनका
कोई किरदार नहीं दिखता
कोई चेहरा नहीं होता
कि आइने में बस
मेरा चेहरा दिखता है।
-----------------------------
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें