स्त्री कितनी आज़ाद
और
कहाँ से
मन से,
देह से
सोच से?
पुरुषों की फिसलती निगाहें
नापती हैं जब उसके
जिस्म के भूगोल को
नहीं उठता कोई भूचाल
न सुनामी आती है!
पर जब वो सचेत दिखती है
अपने संरचनाओं के प्रति,
पा जाती है कई ख़िताब वो
आज भी तू एक वस्तु है
जिसे तुल रहा
पुरुषवादी संचालन
का समाज,
जिसमें कभी अपनी
मर्ज़ी से
चलने पर
वैश्या, कुलटा-व्यभिचारिणी, पतिता ...
और जब वही
पुरुष की मर्ज़ी से प्यास मिटाती है
गाड़ियों में,
सड़कों पर,
होटलों के बंद कमरो में,
रखैल बनकर
एक रात या फिर पूरी उम्र ...
बंद हो जाती है
वो दराज़ें जिनमें
पुरुषों के लिए
कोई सजा की
विधान लिख कर
नज़रअंदाज़ कर दिया गया है।
एक जिस्म
रौंदने के लिए
कुचलने के लिए
किसी और की इच्छाओं से
संचालित।
सांसों का स्पंदन
भी फीका और बेस्वाद,
धड़कता है
पर अपना
ही इख़्तियार नही उनपर…
चलते हैं पग
पर रास्ते और मंजिल भी
मेरे द्वारा तय नहीं,
रह गयी बनकर बस एक
जिस्म जिसे बनाया गया
कुचलने के लिए।
चाँद पर जाओ
या मंगल पर
सदियों से
फड़फड़ा रही है,
स्त्री की आज़ादी
अपनी शर्त पर आज़ाद होने के लिए...।
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जन्म: ७ जून, कुमंदी ग्राम, पलामू, झारखण्ड
चार काव्य संग्रह: 'स्वप्न मरते नहीं ', 'ह्रदय तारों का स्पन्दन', 'पगडंडियाँ' व 'मृगतृष्णा'
विभिन्न पत्र -पत्रिकाओं में प्रकाशित
अनेकों पुरस्कार
भाषा लेखन: हिंदी, पंजाबी, उर्दू.
लेखन: गीत, ग़ज़ल, कहानियां व कविताएँ.
शिक्षा: हिंदी व इतिहास में स्नातकोत्तर। हिंदी में पी.एच. डी. चल रही।
सम्प्रति: संगणक विज्ञान की शिक्षिका
वर्तमान पता: बोकारो (झारखण्ड)
मोबाइल नं: 9576693153, 9470190089
आईना कभी झूट नहीं बोलता है।
जवाब देंहटाएंऔर ये साहित्य समाज का आईना है।
शानदार रचना
सटीक भी।
बहुत सुंदर रचना
जवाब देंहटाएंजी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (10-08-2019) को "दिया तिरंगा गाड़" (चर्चा अंक- 3423) पर भी होगी।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
आप भी सादर आमंत्रित है
….
अनीता सैनी
वाह!!बहुत खूब!!!
जवाब देंहटाएंसुन्दर सटीक एवं सार्थक रचना...
जवाब देंहटाएंवाह!!!
अंतर्मन को झकझोरने वाली रचना।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद सभी को
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