गुरुवार, 17 दिसंबर 2015

जब आदमी नज़र आता है - राजीव उपाध्याय

कि उम्र सारी
बदल कर चेहरे
खुद को सताता है
जब जूस्तजू जीने की
सीने में जलाता है;
उम्र के
उस पड़ाव पर
आ कर ठहर जाना ही
सफ़र कहलाता है
आदमी
जब आदमी नज़र आता है।
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राजीव उपाध्याय

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