कि उम्र सारी
बदल कर चेहरे
खुद को सताता है
जब जूस्तजू जीने की
सीने में जलाता है;
उम्र के
उस पड़ाव पर
आ कर ठहर जाना ही
सफ़र कहलाता है
आदमी
जब आदमी नज़र आता है।
------------------------------------
राजीव उपाध्याय
बदल कर चेहरे
खुद को सताता है
जब जूस्तजू जीने की
सीने में जलाता है;
उम्र के
उस पड़ाव पर
आ कर ठहर जाना ही
सफ़र कहलाता है
आदमी
जब आदमी नज़र आता है।
------------------------------------
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें