शनिवार, 19 दिसंबर 2015

तुम्हारी खुशबू - राजीव उपाध्याय

तुमने मुझसे
वो हर छोटी-छोटी बात
वो हर चाहत कही
जो तुम चाहती थी
कि तुम करो
कि तुम जी सको
पर शायद तुमको
कहीं ना कहीं पता था
कि तुमने अपनी चाहत की खुश्बू
मुझमें डाल दी
वैसे ही जैसे जीवन डाला था कभी
कि मैं करूँ;
और इस तरह
शायद वायदा कर रहा था मैं तुमसे
उस हर बात की
जिससे जूझना था मुझे
जहाँ तुम्हारा होना जरूरी था;
पर तुम ना होगी
ये जान कर शायद इसलिए
तैयार कर रही थी मुझे।

पर तब कहाँ समझ पाया
कि माथे पर दिए चुम्बन
बालों को मेरे सहलाने
टकटकी लगा कर देखने का
मतलब ये था
कि हर शाम की सुबह नहीं होती
कि कुछ सुबहें कभी नहीं आतीं।
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राजीव उपाध्याय

1 टिप्पणी:

  1. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" सोमवार 21 सम्बर 2015 को लिंक की जाएगी............... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ....धन्यवाद!

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