गुरुवार, 30 जुलाई 2015

दुनिया का दिखावा - राजीव उपाध्याय


हर किसी की अपनी ही एक दुनिया होती है। एक ऐसी दुनिया जो सिर्फ उसकी होती है और शायद ही कोई उस दुनिया को जानता है। इस तरह लोगों का एक दूसरे से जान-पहचान होते हुए भी अंजान होते हैं। हर किसी को लगता तो है कि वे बहुत कुछ जानते हैं एक दूसरे के बारे में पर वो बहुत कुछ, बस बहुत कुछ ही होता है पूरा शायद कभी नहीं होता और इस तरह से कहीं ना कहीं एक दूसरे से अंजान ही रह जाते हैं और अक्सर ये अंजान शक्स जो इन्सान के भीतर चुपचाप पड़ा रहता है वो इतना महत्त्वपूर्ण होता है कि वो आपको बिना बताए ही आप पर हुकूमत करता रहता है और इस तरह से आदमी वो नहीं होता है जो वो जानता है। और जो होता है उस तक आदमी पहुँच नहीं पाता।

तुम्हारी दुनिया का
दिखावा कुछ और है
मेरी दुनिया के
उसूल कुछ और
फ़र्क बस इतना है
कि तुम
तुम नहीं होते
और मैं होता हूँ कोई और।

5 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" शुक्रवार 31 जुलाई 2015 को लिंक की जाएगी............... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ....धन्यवाद!

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    1. बहुत बहुत धन्यवाद दिग्विजय अग्रवाल जी कि आपने इस रचना को चर्चा में स्थान दिया।

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  2. आपकी यह उत्कृष्ट प्रस्तुति कल शुक्रवार (31.07.2015) को "समय का महत्व"(चर्चा अंक-2053) पर लिंक की गयी है, कृपया पधारें और अपने विचारों से अवगत करायें, चर्चा मंच पर आपका स्वागत है।

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    1. बहुत बहुत धन्यवाद राजेन्द्र जी। आपने हमेशा ही उत्साह बढाया है।

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