सोमवार, 26 जनवरी 2015

एक अधर्मनिरपेक्ष एवं अनागरिक की तहरीर

खबर है कि भारत के गणतंत्र दिवस के (अ)शुभ अवसर पर तिरंगे को सलामी देने से हमारे उपराष्ट्रपति महोदय जी के धार्मिकता पर बहुत ही भयानक खतरा उत्पन्न होने की सम्भावना थी इसलिए उन्होंने तिरंगे को सलामी ना देने का निर्णय लिया और इस तरह से अपने धर्म निरपेक्षता, समभाव, सौहार्द एवं संविधान के प्रति निष्ठा को प्रदर्शित किया है।
अतः भारत के वासियों से नम्र निवेदन है कि वो इस विषय में प्रश्न कर उनके धार्मिक स्वतंत्रता, जो भारतीय संविधान द्वारा प्रदत्त है, का हनन ना करें क्योंकि उन्होंने ऐसा करने के लिए अपने धार्मिक पुस्तक को हाथ में लेकर शपथ लिया था (कि इस राष्ट्र एवं राष्ट्रीय प्रतीकों के प्रति समर्पित रहेंगे खासकर धर्मनिरपेक्षता के प्रति)। वैसे भी ये कोई पहला मौका नहीं है कि हमारे प्रिय धर्मनिरपेक्ष उपराष्ट्रपति ने अपने धर्म की रक्षा हेतू ये किया है। ऐसा वो पहले भी करते रहे हैं जो कि उनका नैसर्गिक अधिकार भी है।
साथ ही इस राष्ट्र के साम्प्रदायिक लोगों को इस बात को अच्छी तरह से समझ लेना चाहिए कि धर्मनिरपेक्षता के सर्टिफिकेट की आवश्यकता सिर्फ संघ के लोगों के लिए पड़ती है जिसके लिए उन्हें अपने धर्म को पानी पी-पी कर गाली देने की आवश्यकता होती है तथा दूसरे धर्म की मान्यताओं का पालन करना आवश्यक है। इसके सिवाय एक और शर्त है और वो ये है कि आप राष्ट्र के प्रति सम्मान भाव न रखते हुए अपने आदर्श कहीं बाहर ढ़ूढ़ना प्रारम्भ कर दें तथा इस देश जुड़ी हर चीज को नीचा दिखएं। यदि आप ये कर सकते हैं तो आप स्वघोषित सेकुलर हैं और आपके प्रति ये अकिंचन राष्ट्र सदा ही आभारी रहेगा।
नोट: कृपया ध्यान न दें।

2 टिप्‍पणियां:

  1. मस्त व्यंग ...
    ऊपर से क्लरिफिकेशन भी आ गया की जरूरी नहीं है उपराष्ट्रपति का सलामी लेना राष्ट्रपति के होते हुए ... कितनी लचर दलील ...

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    1. जी सही कहा आपने। वक्त और लोगों का क्या कहना? अब तो माँ को माँ कहने से भी लोगों शर्म आ रही है तो क्या कहा जाए। अफसोस इस बात का है कि लोग और मीडिया इसे सही ठहराने के बेचैन हुए जा रहे हैं। उनको लगता है वो धर्मनिरपेक्षता की बात कर रहे हैं। पर उनको नहीं पता कि वो जो कर रहे हैं उससे राष्ट्र कमजोर होगा। औरी रही बात मुसलमान भी तो इसे गलत मान रहे हैं। वो भी खुश नहीं इस घटना से। फिर ये विद्वान बेचैन फिर रहे हैं।

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