हे! पक्ष-विपक्ष के देवतागण अगर संभव तो आप सभी देवासूर संग्राम के इस धर्मयुद्ध को बन्दकर इस तुच्छ राष्ट्र के बारे में सोचिए। क्योंकि देर हो जाने के बाद हाथ मलते रह जाएगें। अगर दिन में एक साथ सियार ध्वनि नहीं निकाल सकते तो अपने वाले समय में ही (शाम की निश्चित हुड़दंगई काल) कुछ पाठ-वाठ कर लीजिए। हमारा भी कल्याण हो जाएगा और आप सभी का भी क्योंकि हमारे ही कल्याण से आपके रसपान का रास्ता निकलता है। क्योंकि सदैव देखा और पाया गया है कि आप सभी अपने कल्याण हेतु समस्त साधनों का निर्धारण बड़ी शालीनता से करते हैं जिसे देखकर हम सामान्य जन (आम आदमी का प्रयोग अब वर्जित है क्योंकि किसी ने इस पर कापीराइट ले रखा है) हतप्रभ हो उठते हैं इतने शालीन देवों के पूजक इतने अशालीन कैसे हो सकते हैं। पुनः आप सभी हमें लज्जित करने की कृपा करें।
जब भी राष्ट्र के बारे में सोचने लगेंगे .. कुछ तो भला हो ही जाएगा ...
जवाब देंहटाएंजी सहमत हूँ आपसे।
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