याद रोज़ आती है कि जाती है, ख़बर ना मुझको
शमां जलती है कि बुझती है, है पता किसको।
देता हूँ रोज़ आवाज़, शायद देता नहीं सुनाई
बात कुछ कहती है या नहीं है मालूम किसको॥
शायद अब तुम्हें मेरी जरूरत नहीं, पर आज भी ये आँखें तकती हैं।
अश्क आज भी मेरे कहना चाहें बात कई, पर रुबरू होने से डरती हैं॥
मैं हर पल साथ तेरे था, बस नज़र उठाकर देखा होता।
धुंधली सी परछाईं बनकर, पीछे तेरे खड़ा था॥
the tear drops roll down as a lovely poem. it might take you from zero to infinity. who knows?
जवाब देंहटाएंwell written, keep going:)
thanks for the encouragement.
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