स्वयं शून्य
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रविवार, 14 सितंबर 2014
आहिस्ता आहिस्ता दर्द बढ़ता है - राजीव उपाध्याय
आहिस्ता आहिस्ता
दर्द बढ़ता है
दिल के किसी कोने में।
यादों की पुरवाई
आकर मुझसे कहती है
तन्हाई
के मौसम में॥
©
राजीव उपाध्याय
2 टिप्पणियां:
संजय भास्कर
23 सितंबर 2014 को 1:13 pm बजे
अच्छी भावपूर्ण रचना !
मेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है
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Dr. Rajeev K. Upadhyay
23 सितंबर 2014 को 6:55 pm बजे
धन्यवाद संजय जी।
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अच्छी भावपूर्ण रचना !
जवाब देंहटाएंमेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है
धन्यवाद संजय जी।
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