मैं हर पल साथ तेरे था, बस नज़र उठाकर देखा होता।
धुंधली सी परछाईं बनकर, पीछे तेरे खड़ा था॥
दो चार लोगों से मिलकर देखा, तो मेरे ग़म की शिनाख़्त हुई।
धुंधली सी परछाईं बनकर, पीछे तेरे खड़ा था॥
दो चार लोगों से मिलकर देखा, तो मेरे ग़म की शिनाख़्त हुई।
कभी औंधे मूँह गिरे थे, कभी कड़ती दोपहर सी बरसात हुई॥
तल्ख़ जिन्दगी की कश्मकश में, हम इस कदर खोए रहे ।
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