रविवार, 11 दिसंबर 2011

कुछ मुक्तक -2

सुना था आइने में चेहरा दिखता है।
पर आज चेहरे में चेहरा दिखा है


हम रोते हुए निकले घर से, तूम हंसते हुए।
लोगों ने समझा, एक खुश है, है दुसरा ग़म में।
पर उन्हें क्या पता, हम दोनों ही खुश हैं॥

चलना चाहता हूँ कुछ दूर तक मैं
पर मंज़िल का पता नहीं
और रास्ता भी चुपचाप है
©राजीव उपाध्याय

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