शनिवार, 10 दिसंबर 2011

कुछ मुक्तक -1

ग़लफ़त में ना रहिए हुजूर, ये ग़लफ़त आपको गला देगी।
तब मुक़्द्दर भी ना करेगा इनायत, शराफ़त के मुद्द्तों से।।




है मुमकिन कि तूम मुझसे ख़फ़ा हो जाओ।
जब बात कहूँ दिल की तो बेवफ़ा हो जाओ

मैं इसे नज़र का फेर कहूँ, या ज़िग़र का फेर।
कि नज़र ने नज़रबाज़ को, नज़रंदाज़ कर दिया॥
©राजीव उपाध्याय

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