मंगलवार, 29 जून 2021

शब्दों के मायने - राजीव उपाध्याय

तुम जिन रिसालों के जानिब
दुनिया बदलना चाहते हो
तुम जानते नहीं शायद
कि लोग उनको अब पढते नहीं।

खबर तुमको नहीं ये भी शायद अब
कि शब्दों के मायने जो तुमने सीखा था कभी
वक्त की सडक़ पर घिसकर
मानी उनका अब कुछ और ही है हो गया!

कहानियों ने जिन रास्तों को पाक बहुत बताया है
रहगुज़र जो भी गया है आग लगाकर उनमे गया है
अब मुंतज़िर कोई नहीं है फैसले देते सभी
कि गुनाह भी यहाँ शायद खुदा का रास्ता है!

फलसफों के फसाने जाल कुछ यूँ हैं बुनते
कि आदमी ना आदमी रहा कैद हैं जेलों में
कौन सी तहरीर बता हम दीवार पर लिखें?
कि तुम अपना कफस कब तोड दो?
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1 टिप्पणी:

  1. अब तो अर्थों के अर्थ भी बदलने में लगे हैं लोग.
    बहुत सार्थक व उम्दा रचना.

    नई पोस्ट 👉🏼 पुलिस के सिपाही से by पाश
    ब्लॉग अच्छा लगे तो फॉलो जरुर करना ताकि आपको नई पोस्ट की जानकारी मिलती रहे.

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