स्वयं शून्य
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शनिवार, 4 जनवरी 2020
आपकी हँसी - रघुवीर सहाय
निर्धन जनता का शोषण है
कह कर आप हँसे।
लोकतंत्र का अंतिम क्षण है
कह कर आप हँसे।
सबके सब हैं भ्रष्टाचारी
कह कर आप हँसे।
चारों ओर बड़ी लाचारी
कह कर आप हँसे।
कितने आप सुरक्षित होंगे
मैं सोचने लगा।
सहसा मुझे अकेला पा कर
फिर से आप हँसे।
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रघुवीर सहाय
1 टिप्पणी:
Nitish Tiwary
5 जनवरी 2020 को 6:47 pm बजे
बहुत सुंदर पंक्तियाँ।
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बहुत सुंदर पंक्तियाँ।
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