
इस सफर में बहुत कुछ कहा और बहुत कुछ अनकहा सा रहता है। कभी कुछ कहे का तो कभी बहुत कुछ अनकहे का अपना ही किरदार होता है जो जिन्दगी के आटे में कुछ इस तरह गुथे होते हैं कि उनके अलग अस्तित्व का कभी भान ही नहीं होता है। लगता ही नहीं है कि हमसे जुदा हैं। मगर हर किरदार और भाव, साथ हों या गुजर गए हों, नेपथ्य में खड़े होकर एक अदृश्य सूत्रधार की तरह बारी बारी से जिन्दगी के परदे को गिराते और उठाते रहते हैं और हम किरदार बदल बदलकर जीते रहते हैं। इन किरदारों और भावों में जिन्दगी कुछ इस तरह उलझती है कि हम उन्हें सुलझाने में लग जाते हैं और उधर अनजाने में हमारी कहानी मुकम्मल हो जाती है जिसे हम कई बार जान रहे होते हैं तो कई बार अन्जान और अक्सर ही नज़रअंदाज कर रहे होते हैं।
इस कहानी में हर किरदार और भाव का अपना निश्चित योगदान होता है तो मूल्य भी। हालँकि शुरू शुरू में हमें ना तो योगदान का भान होता है और ना ही मूल्य का आकलन। मगर जब कारवाँ गुजर जाता है और कोई नासूर सा याद आता है तो योगदान और मूल्य सामने आकर खड़े हो जाते हैं। तो वहीं हम किसी को ताउम्र बहुत कीमती मानते हैं। शायद अमूल्य। परन्तु उसे फर्क ही नहीं पड़ता है और हम कीमत चुकाते नहीं थकते और उनको हर कीमत मिट्टी लगती है। सड़क पर पैरों से कुचली मिट्टी और हम वहाँ भी शायद खुश ही रहते हैं।
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