उलझनें हर बार छटपटाहट में बदल जाती हैं
और मन जैसे किसी कालकोठरी में हो बंद
मुक्त होने का स्वप्न लेकर
देता है दस्तक तेरे महल के दरवाजे पर
लिखा है जहाँ शब्दों में बडे
प्रतिबंध ही तो आसमान के दरवाजे को ढकेलकर
उस पार की हवा में आपकी खुश्बू को छौंकता है
जिससे नया आस्वाद नई कहानियों की तासीर तय करता है
जो आज में, कल में घुलकर
नए किरदार गढता है
और ये गढत ही नए बंधनों के पाश को
कुछ इस तरह फेंकता है
कि बंधकर भी आदमी
मुक्त हो जाता है
कि बंधन भी मुक्ति का द्वार है शायद।
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जी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (०८ -१२-२०१९ ) को "मैं वर्तमान की बेटी हूँ "(चर्चा अंक-३५४३) पर भी होगी
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का
महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
आप भी सादर आमंत्रित है
….
अनीता सैनी
स्थान देने के लिए सादर धन्यवाद।
हटाएंबहुत बढ़िया। बधाई।
जवाब देंहटाएंसादर धन्यवाद
हटाएंसुन्दर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंसादर धन्यवाद।
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