गुरुवार, 5 सितंबर 2019

माँ है रेशम के कारख़ाने में - अली सरदार जाफ़री

माँ है रेशम के कारख़ाने में
बाप मसरूफ़ सूती मिल में है
कोख से माँ की जब से निकला है
बच्चा खोली के काले दिल में है।

जब यहाँ से निकल के जाएगा
कारख़ानों के काम आएगा
अपने मजबूर पेट की ख़ातिर
भूक सरमाये की बढ़ाएगा।

हाथ सोने के फूल उगलेंगे
जिस्म चान्दी का धन लुटाएगा
खिड़कियाँ होंगी बैंक की रौशन 
खून इसका दिये जलाएगा।

यह जो नन्हा है भोला-भाला है
खूनी सरमाये का निवाला है
पूछती है यह, इसकी ख़ामोशी
कोई मुझको बचाने वाला है!
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अली सरदार जाफ़री
अली सरदार जाफ़री

6 टिप्‍पणियां:

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  2. जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना शुक्रवार ६ सितंबर २०१९ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।

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  3. जबरदस्त।
    यथार्थ का कला चेहरा ।

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  4. चर्चा में स्थान देने के लिए सादर धन्यवाद सर

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