धरती घूमती रहती हर-पल
सूरज-चन्द्र ना रुकते इक पल
हल-चल में ही जड़ और चेतन
उद्देश्यपूर्ण ही उनका लक्षण
सदैव कार्यरत धरा-गगन है
गति विकास है गति लक्ष्य है
गति प्रवाह है गति तथ्य है
धक-धक जो करता है धड़कन
मन-शरीर में होता कम्पन
दौड़ते जाते हर-दम आगे
एक-दूजे को देख कर भागे
लक्ष्य भूलकर सदा भटकते
उचित-अनुचित का भेद ना करते
पूर्णता की प्यास में आकुल
तन और मन रहता है व्याकुल
संबंधों का ताना-बाना
बुनता रहता है अनजाना
एक ही सत्य जो सदा अटल है
हर रिश्ते नातों में प्रबल है
जहाँ मृत्यु है वही विराम है
फिर ना कुछ भी प्रवाहमान है
पूर्ण अनंत ही ईश समर्पण
जैसे विलीन हो जल में जल-कण
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जन्म स्थान - मधुबनी, बिहार
स्वर्ग विभा, अनहद कृति, साहित्य शिल्पी इत्यादि में रचनाएँ प्रकाशित।
सम्मान: स्वर्गविभा तारा ऑन लाइन द्वितीय पुरस्कार - २०१४
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