जिन अंधेरों से बचकर भागता हूँ
हमदम हैं वो मेरे।
जिनके साथ हर पल मैं जीता हूँ
और मरता भी हूँ हर पल
कि आखिरी तमन्ना हो जाए पूरी।
मगर वो तमन्ना
आज तक ना पाया हूँ
कि बेवश फिरता रहता हूँ
पूछता रहता हूँ
मैं मेरे अंधेरों से
"कि कुछ तो होगी
तुम्हारे होने की वजह?"
अक्सर वो चुप ही रहते हैं
जब जी मुहाल कर देता हूँ उनका मैं
तो हँस कर कहते हैं
"और वजह क्या हो सकती है तुम्हारे सिवाय?
मैं तुम ही हूँ
अलग कहाँ हूँ मैं तुमसे?
बस तुम अलहदा हो सोचते हैं
मैं तुझमें जीता हूँ।"
हर बार जबाव यही होता है
और डरता हूँ मैं
मगर जानता ये भी हूँ मैं
कि इन सवालों में ही
सुकून अपना ढ़ूँढ़ता हूँ मैं।
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राजीव उपाध्यायहमदम हैं वो मेरे।
जिनके साथ हर पल मैं जीता हूँ
और मरता भी हूँ हर पल
कि आखिरी तमन्ना हो जाए पूरी।
मगर वो तमन्ना
आज तक ना पाया हूँ
कि बेवश फिरता रहता हूँ
पूछता रहता हूँ
मैं मेरे अंधेरों से
"कि कुछ तो होगी
तुम्हारे होने की वजह?"
अक्सर वो चुप ही रहते हैं
जब जी मुहाल कर देता हूँ उनका मैं
तो हँस कर कहते हैं
"और वजह क्या हो सकती है तुम्हारे सिवाय?
मैं तुम ही हूँ
अलग कहाँ हूँ मैं तुमसे?
बस तुम अलहदा हो सोचते हैं
मैं तुझमें जीता हूँ।"
हर बार जबाव यही होता है
और डरता हूँ मैं
मगर जानता ये भी हूँ मैं
कि इन सवालों में ही
सुकून अपना ढ़ूँढ़ता हूँ मैं।
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Bahut badhiya rachna
जवाब देंहटाएंधन्यवाद रश्मि जी
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