शनिवार, 2 अप्रैल 2016

आज फिर मैं दिल अपना लगाना चाहता हूँ - राजीव उपाध्याय

आज फिर मैं, दिल अपना लगाना चाहता हूँ
खुश है दुनिया, खुद को जगाना चाहता हूँ॥

तन्हाइयों की रात, गुजारी हमने अकेले सारी
बहारों की फिर कोई, दुनिया बसाना चाहता हूँ॥

देर से लेकिन सही, आया हूँ लौटकर मगर मैं
दर बदर अब नहीं, घर मैं बसाना चाहता हूँ॥

देखो मुड़कर इक बार फिर, अब पराया मैं नहीं
थका हूँ चलते-चलते, दिल का ठिकाना चाहता हूँ॥

पोंछ लो इन आशुओं को, इनमें कोई पयाम नहीं
सिरफिरा ही सही, दिल फिर से चुराना चाहता हूँ॥
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 राजीव उपाध्याय

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