हर गुनाह के जाने ही कितने पहलू और पक्षकार होते हैं लेकिन दिन के उजाले में कुछ ही पहलू और पक्षकार आते
हैं और बाकी विभिन्न पक्षकारों की सुविधा के अनुसार छिपा दिए जाते हैं। इस
काम को करने में बुद्धिजीवियों की महत्तपूर्ण भूमिका होती है जो अपनी
सुविधाओं (जिनका हुक्म बजाते हैं) के अनुसार तर्क गढते हैं और ये तर्क
अक्सर सत्य को छिपाकर अक्सर नये सत्य गढते हैं और गुनाहगार बच निकलता है और
लोग छाती पिटते रह जाते हैं।
एक
लम्बा इतिहास है भारत में जहाँ सैकड़ों हाशिमपुरा और गुजरात जैसे नरसंहार
लोगों की जिन्दगी में नासूर बनकर ताउम्रा सालते रहे है। ये इन्सान के
द्वारा इन्सान के लिए बनाई गई त्रासदियाँ हैं जिसमें दोनों ही पक्ष पिसता
है ठीक उस आदमी की तरह जिसका घर अचानक आए तुफान में गिर जाता है और वो आदमी
समझ नहीं पाता क्या करे और क्या ना करे। सालों लग जाते हैं उसको घर को
दुबारा बनाते-बनाते। पर घर बन जाने के बाद टीस कम हो जाती है। पर इस तरह के
नरसंहारों से होकर गुजरने वाला इन्सान उस त्रासदी के नासूर से ताउम्र हर
रोज़ मरता रहता है और कई बार उस नासूर को अगली पीढ़ी को भी देकर जाता है।
चाहे
वो हाशिमपुरा हो या गुजरात गलतियाँ दोनों पक्षों ने की जिसके लिए दोनों
पक्षों को सजा मिलनी चाहिए लेकिन बुद्धिवादियों ने सिर्फ एक पक्ष को दोषी
बना दिया और दूसरे पक्ष को दूध को धुला। लेकिन ऐसा कभी भी नहीं हुआ।
निष्पक्ष न्याय तो यही कहता है अगर गलती दोनों पक्षों ने की तो सजा दोनों
को मिलनी चाहिए और उसको ज्यादा जिसने पहला पत्थर फेंका। और न्याय करते हुए
आपको भूल जाना होगा कि उस पक्ष का धर्म या जाति क्या है? न्यायलय की दृष्टि
में वह सिर्फ और सिर्फ गुनाहगार है क्योंकि अगर आप गुनाहगार में धर्म और
जाति देखते हैं तो गुनाह को जान बुझकर बढावा दे रहे हैं। क्योंकि जिसको इस
बंटवारे से फायदा होगा वो उस गलती को दुहराते हुये डरेगा नहीं और जिसका
नुकसान होगा वो प्रतिक्रिया करेगा ही करेगा क्योंकि ये उसके लिए न्याय नहीं
हो सकता। ये इन्सानी स्वभाव है और ये चक्र चलता रहेगा। एक ना रुकने वाला
चक्र जिसमें हर कोई पीसता रहेगा। लोग लोकतन्त्र और न्यायलय को गालियाँ देते
रहेंगे पर लोग मरते रहेंगे। तादाद बढती जाएगी।
अब तय आपको करना है कि आप जाना कहाँ चाहते हैं?
मंगलकामनाएं आपको !
जवाब देंहटाएंधन्यवाद सक्सेना साहब कि आपने अपना समय निकालकर कुछ हमें भी दिया। हार्दिक आभार।
हटाएंबखूबी अपने ख्यालात रखे हैं
जवाब देंहटाएंसत्य वचन
धन्यवाद जफ़र साहब।
हटाएंधन्यवाद साहब।
जवाब देंहटाएंबिलकुल सत्य.हालांकि कई बार सबूतों के अभाव में न्याय एक पक्षीय हो जाता है.
जवाब देंहटाएंनई पोस्ट : बिन रस सब सून
जी सहमत हूँ। धन्यवाद
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