मरने के बाद आदमी ने स्वयं को दो दरवाजों के बीच खड़े पाया. एक पर लिखा था “लालसा”, और दूसरे पर “भय” लिखा था.
एक देवदूत उस तक आया और बोला, “तुम किसी भी द्वार को चुन सकते हो. दोनों ही नित्यता के मार्ग पर खुलते हैं”.
आदमी ने बहुत सोचा पर उसे तय करते नहीं बना. उसने देवदूत से ही पूछा, “मुझे कौन सा दरवाज़ा चुनना चाहिए?”
देवदूत ने मुस्कुराते हुए कहा, “उससे कोई फर्क नहीं पड़ता. दोनों ही यात्राओं की परिणति दुःख में होती है.”
एक देवदूत उस तक आया और बोला, “तुम किसी भी द्वार को चुन सकते हो. दोनों ही नित्यता के मार्ग पर खुलते हैं”.
आदमी ने बहुत सोचा पर उसे तय करते नहीं बना. उसने देवदूत से ही पूछा, “मुझे कौन सा दरवाज़ा चुनना चाहिए?”
देवदूत ने मुस्कुराते हुए कहा, “उससे कोई फर्क नहीं पड़ता. दोनों ही यात्राओं की परिणति दुःख में होती है.”
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