स्वयं शून्य
पृष्ठ
मुख्यपृष्ठ
कविता
कहानी
आलेख
आलोचना
व्यंग्य
मंगलवार, 6 दिसंबर 2011
कहकहे भी कमाल करते हैँ
कहकहे भी कमाल करते हैँ
आँसुओं से सवाल करते हैं।
ज़ब तन्हा रोते हैं हम
हँसा हँसा कर बूरा
हाल करते हैं
।
©
राजीव उपाध्याय
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
नई पोस्ट
पुरानी पोस्ट
मुख्यपृष्ठ
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें