शाम से ही मनहुसियत छाई है, जाने कब से शमा ललचाई है।
बस एक अदद मौत मांगी थी हमने, देकर खुद जिन्दगी का हवाला।
जिन्दगी ना मिली, मौत भी ले गया, जाने दिया कौन सा निवाला॥
परवाह ना कीजिए हुज़ूर आप, चीजें खुद बदल जाएंगी।
जिन्दगी सफ़र अन्जाना, राहें मंजिल मिल जाएंगी॥
©राजीव उपाध्याय
आपकी लिखी रचना शनिवार 11 अक्टूबर 2014 को लिंक की जाएगी........... http://nayi-purani-halchal.blogspot.in आप भी आइएगा ....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत धन्यवाद यशोदा जी।
हटाएंbahut khoob ....
जवाब देंहटाएंधन्यवाद निशा जी।
हटाएंवाह
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत धन्यवाद ओंकार जी।
हटाएंBahut hi umda abhivyakti ,,,,!!
जवाब देंहटाएंप्रोत्साहन के लिए धन्यवाद परी जी।
हटाएं