बुधवार, 7 जुलाई 2021

आओ फिर से दिया जलाएँ - अटल बिहारी वाजपेयी

आओ फिर से दिया जलाएँ
भरी दुपहरी में अँधियारा
सूरज परछाई से हारा
अंतरतम का नेह निचोड़ें-
बुझी हुई बाती सुलगाएँ।
आओ फिर से दिया जलाएँ।

हम पड़ाव को समझे मंज़िल
लक्ष्य हुआ आँखों से ओझल
वर्त्तमान के मोहजाल में-
आने वाला कल न भुलाएँ।
आओ फिर से दिया जलाएँ।

आहुति बाकी यज्ञ अधूरा
अपनों के विघ्नों ने घेरा
अंतिम जय का वज़्र बनाने-
नव दधीचि हड्डियाँ गलाएँ।
आओ फिर से दिया जलाएँ।
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अटल बिहारी वाजपेयी




6 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 08-07-2021को चर्चा – 4,119 में दिया गया है।
    आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ाएगी।
    धन्यवाद सहित
    दिलबागसिंह विर्क

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  2. बहुत सुंदर रचना है।
    अटलजी को नमन।

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  3. आओ फिर से दिया जलाएँ
    भरी दुपहरी में अँधियारा
    सूरज परछाई से हारा
    अंतरतम का नेह निचोड़ें-
    बुझी हुई बाती सुलगाएँ।
    मेरी मनपसन्द कविता👏👏👏

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